Wednesday, September 12, 2012

अपराजिता...

अभिव्यक्ति बहुत जरूरी है...चाहे किसी भी माध्यम से हो...शब्दों में बांधकर कागज पर लिख दो या भावनाओं के साथ बोल डालो...मेरे लिए अभिव्यक्ति कच्चे दूध की तरह है...ऐसे ही छोड़ दिया तो गंधाने लगेगा और जरा सी आंच दिखा दी तो उबल पड़ेगा...उबलना ज्यादा अच्छा है...गंधाने से...भावनाओं को खुल कर अभिव्यक्त करो नहीं तो अंदर ही अंदर वो न जाने कौन सा खड़मंडल मचा दें...
मै नारीवाद की समर्थक हूं...इसलिए नहीं कि मैं खुद औरत हूं...ना...इसी सोच के साथ मैने अगर पुरूष रूप में जन्म लिया होता तो भी मैं औरत और उसकी जिंदगी को इसी नजरिए से देखती...ये कहना तो बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि हमारा समाज औरत को “वस्तु“ के नजरिए से देखता है...बहुत कम होंगे जो सही मायनों में औरत को औरत का दर्जा देते हैं...एक खुशहाल परिवार...(जो सिर्फ बाहरी लोगों को खुशहाल दिखता है)...उस खुशहाली के पीछे औरत के कितने समझौते होते हैं...ये खुद वो औरत भी नहीं जानती...परिवार को हर हाल में खुश देखना उसकी कमजोरी बन जाती है और वो हर खुशी के लिए अपने अस्तित्व को भूलती जाती है...
अच्छा होता अगर ये सब किसी वर्ग विशेष की औरतों के साथ होता...लेकिन हमारे पुरूष प्रधान समाज में कहीं भी औरत और आदमी में समानता नहीं दिखती...दिन भर ईंट ढोने वाली औरत से लेकर किसी कंपनी की सीईओ तक इस असमानता की शिकार हैं...
नारीवाद पर मैं अपनी अभिव्यक्ति बोलकर देना ज्यादा पसंद करूंगी लेकिन उसके लिए सही प्लेटफार्म अभी मेरे पास नहीं हैं...लिखकर अभिव्यक्ति देने से कई बातें छूट जाती हैं...फिर भी मैं लिखूंगी...अपनी अब तक की जिंदगी में मैंने औरत को खूब अच्छे से जान लिया है...औरत पर कोई रोचक लेख लिखना मेरे बस की बात नहीं है...
मैं पेशे से पत्रकार हूं...पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में मैं कई औरतों से मिली हूं और उन्हे बहुत बारीकी से आब्जर्व किया...कुछ सीधी-सादी,कुछ तेज-तर्रार कुछ बहुत बुरी...कुछ अपने जीवन से खुश और कुछ निराश...कई वाकये मेरे ही सामने हुए हैं जिन्होने मुझे द्रवित कर दिया...गांव में धोबन चाची को उनके पति ने सबके सामने लथार-लथारकर मारा...क्यूं मारा पता नहीं,दिल्ली जैसे शहर में अपनी बहन की शादी में ब्यूटीशियन से सजती औरत को उसके पति ने सबके सामने जोरदार तमाचा जड़ दिया...बस इसलिए कि मुझ पर जिम्मेदारियां हैं और तुम्हे सजने की पड़ी है...गाली-गलौच और न जाने क्या-क्या, ट्रेन में मिली लड़की को छेड़ते गंवार लड़के...उसकी बड़ी-बड़ी आंखों से गिरते मोटे-मोटे आंसू और उसको देखती लाचार मैं...और भी ऐसी कई घटनाएं मैने खुद देती हैं...मेरी आत्मा खुद से विद्रोह कर उठती है ये सब देखकर..मैने हर बार इन सब पर कुछ लिखने की कोशिश की लेकिन लिखने से पहले ही मैं असहाय हो जाती थी सोच-सोचकर...इन्ही सब खयालों से लदर-बदर मैं आज तक मैं कुछ नहीं लिख पाई...लेकिन फिर से कुछ घटित हुआ मेरे सामने...घटित क्या हुआ जिस पर बीती थी उसने अपनी आप बीती खुद सुनाई...बहुत भयावह सच...उसकी जिंदगी पता नहीं अब खतम हो गई है या अब शुरू हुई है...
उसकी कहानी अगली पोस्ट में...

3 comments:

  1. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .

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  2. मेरी पहली टिप्पणी नहीं दिख रही है

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  3. नारी का व्यक्तित्व इतना दबा-कुचा रह जाता है कि उसकी स्वतंत्र सत्ता को स्वीकृति नहीं मिलती.उसका समुचित विकास(ध्यान इस पर दिया जाना चाहिये)करने पर ही उसे वांछित महत्व मिल सकेगा और वह स्वाभिमान से जी सकेगी.

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