Friday, May 28, 2010

किसी को अपनी जरूरत न हो तो क्या कीजे...


आज दिन बड़ा उदास बीता...कुछ भी करने की इच्छा नहीं हो रही थी ....दिमाग पर जोर डाल-डाल कर मैं थक गयी ...पर उदासी की वजह नहीं जान पायी...किसी से सुना था कि जब कभी बेवजह मन उदास हो तो रो लेना चाहिए...वो कोशिश मैंने भी की ...और जब आंसू आने शुरू हुए तो सोचने लगी कि मैं रो क्यों रही हूँ ...छि ...क्या मैं कायर हो गयी हूँ या मुझमे परिस्थितियों का सामना करने की हिम्मत नहीं है... फिर मैं चुप हुयी और खुद को दिलासा देने लगी ...फिर सोचने लगी कि दिलासा किस बात कि दे रही हूँ मैं ....सब तो ठीक है ...चल पागल ...कुछ भी सोच-सोच कर दिमाग ख़राब करती रहती है अपना ...हाँ लेकिन ये सच है कि आज सांस तक लेने में तकलीफ महसूस हो रही थी ....मैंने वो सब काम किये जिनसे मुझे ख़ुशी मिलती है ...लेकिन अफ़सोस मुझे कामयाबी नहीं मिली ....सबसे पहले अपना मनपसंद संगीत बजाया ...मधुशाला....हरिवंश राय बच्चन जी की इन गजलों को जब भी सुनती हूँ तो मन को असीम शांति मिलती है ...लगता है की मैं भी सुरा के प्याले में गोते लगा रही हूँ ....उनका एक एक शब्द उस धीमे और मधुर संगीत के साथ आत्मा में उतरने लगता है ...लेकिन आज उन शब्दों का बिलकुल विपरीत ही असर हुआ मुझ पर ....तर्पण-अर्पण करना मुझको पढ़-पढ़ कर के मधुशाला॥
मेरे अधरों पर हो न अंतिम वस्तु न गंगा जल प्याला॥
मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे तुम रखना॥
राम -नाम है सत्य न कहना ...
कहना सच्ची मधुशाला॥
ये सब कुछ नया नहीं था मेरे लिए ..लेकिन ये सब सुनकर मन और उचाट हो गया ...मैंने म्यूजिक बंद किया ....जब इससे भी शांति नहीं मिली तो तार-वार सब निकाल कर उसे कबर्ड में डाल दिया ... ताकि वो मुझे दिखाई भी न दे ...फिर सोचा कुछ पढ़ लिया जाए ...ज्ञानवर्धक किताबें न पढ़कर मैंने मनोरंजक किताब 'सखी' उठाई ...कभी-कभी अच्छा लगता है फैशन परक किताबे पढ़ना ....लेकिन आज उसका भी मुझ पर उल्टा ही असार हुआ ....ऐसा लगा कि खुबसूरत लिबासों में सजी साड़ी मॉडल्स मुझे चिढ़ा रही हैं ....वो पन्ने मैंने जल्दी-जल्दी पलट दिए... और जब खाना खजाना की बारी आई तो मुझे किताब बंद करनी पड़ी ....क्योंकि मैं जानती थी कि अगर मुझे अभी कुछ अच्छा खाने का मन कर गया तो बड़ी मुसीबत हो जायेगी ....अच्छा होगा कि इसे बंद कर दूँ ॥
मैंने आज जो महसूस किया वो बड़ा अजीब था ...ऐसा लग रहा था कि मेरा दिमाग बिलकुल खाली हो जाए ...या मैं थोड़ी देर के लिए गायब हो जाऊं ....किसी ऐसी जगह चली जाऊं कि मुझे ही कोई खबर न रहे ...मुझे मेरी कोई जरूरत ही ना रह जाए॥
बड़ी उठापटक के बाद शाम कोई जब ऑफिस आई तो भी लगा कि वही रोज़ की तरह बोझिल काम करुँगी ..लेकिन कैसे तैसे काम निपटाया ...और फिर सोचा कि कुछ लिखा जाए ...कई दिन हो गए ..मैं अभी थोडा ठीक महसूस कर रही हूँ ...इस उम्मीद पर जा रही हूँ कि शायद रात में अच्छी नींद आ जाये ....और आप लोगों को ये सुझाव जरूर देना चाहूंगी कि ...किसी को अपनी जरूरत न हो तो ....ब्लॉग लिखें ....