Thursday, September 13, 2012

तवस्सुम...


उस दिन मैंने आॅफिस से छुट्टी ली थी...तबियत ठीक नहीं थी...मैं अपने कमरे में आराम कर रही थी...बहुत देर से बाहर से थोड़ी-थोड़ी आवाज आ रही थी...मम्मी किसी से बात कर रहीं थीं...उत्सुकतावश मैने खिड़की से झांका...मम्मी एक लड़की से बात कर रहीं थीं...मैं फिर सो गई...थोड़ी देर बाद मम्मी उसे अंदर ले आईं और मुझे उठाया...मैं उसके पास गई...मैने देखा वो लड़की शादीशुदा थी...बेहद कमजोर सी...आंखों ने नीचे काले घेरे...गाल पिचके हुए...गोद में दो-ढाई साल का बच्चा...मेरे आते ही औपचारिकतावश उसने एक खाली सी मुस्कान दी...वो हमारे घर काम मांगने आई थी...पहले लगा कि गरीबी ने उसे घर घर काम मांगने को मजबूर किया होगा...फिर उसके शरीर पर कुछ चोट के पुराने निशान दिखे...फिर लगा...वजह कोई और है...पूछने की भी हिम्मत नहीं हुई...ये नीजी सवाल था और उसकी उदासी से जाहिर था कि वो परेशान है...लेकिन मेरी मां उससे उसके बारे में पूछने लगीं...तुम्हारी शादी कब हुई...तुम्हारा पति कैसा है...ससुराल कहां है...वगैरह...वगैरह
उसने बताया तीन साल पहले उसकी शादी हुई थी...पति शराब पीता है...और उसे मारता है...ये बात बहुत आम थी...निचले तबके से अकसर ऐसी खबरें आती रहती हैं...फिर वो खुद ही अपने बारे में बताने लगी...अपना दुख कहने को बैचेन सी लग रही थी...मैंने कहा डरो मत...मैं तुम्हारी मदद करूंगी...
उसके नीरस चेहरे पर आत्म विश्वास के हल्के चिन्ह उभर आए...उसने निर्बाध बोलना शुरू किया...मेरा पति शराब पीता है...मायके से पैसे मांगने को कहता है...उसकी चाची से उसके सम्बंध हैं...अब जब ससुराल वालों के साथ मिलकर पति ने उसकी जान लेने की कोशिश की तो वो अपने मायके चली आई...लेकिन बदनसीबी ने यहां भी साथ नहीं छोड़ा...मां ने कह दिया.... पति मारे या पीटे उसी के पास जा...
अपने मां-बाप से ये सुनकर उसे कैसा लगा होगा ये बताने की जरूरत नहीं है...लेकिन वो वहीं रूक गई...मां ने एक पुराना सीलन से भरा बंद कमरा उसके लिए खोल दिया बस....अपने और अपने बच्चे के खाने पीने का इंतजाम उसे खुद करना है...
मुझे पहली बार किसी औरत की व्यथा को लेकर मन पर भारीपन नहीं लगा...उसके जज्बे को देखकर खुशी हुई...मैंने और मम्मी ने उसे विश्वास दिलाया की अब सब ठीक हो जाएगा...
घर में मैं, मम्मी और पापा तीन लोग हैं इसलिए ज्यादा काम भी नहीं है...उसने कहा सिर्फ आज के लिए कुछ काम करवा लो पैसे की जरूरत है...मां ने उसे पैसे दिए और कुछ कपडे़ भी...उम्मीद है कुछ दिनों में उसके लिए काम की व्यवस्था भी हो जाएगी...
एक जो बात उसकी अच्छी लगी...वो एक बार भी नहीं रोई...जिसे मैं इंसान की सबसे बड़ कमजोरी मानती हूं...लोग औरत को कमजोर मानते हैं और उसके आसुंओं को उसका हथियार...लेकिन अब औरत की परिभाषा बदल रही है...अब वो कमजोर नहीं है...उसके बदले हुए रूप को स्वीकारने के लिए पुरूष वर्ग तैयार रहे...

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