Friday, March 19, 2010

नहीं भूलती वो लज्जाशीला वृद्धा

मैं स्टेशन पर पहुंची तो मेरी ट्रेन आने में अभी वक्त था ....सियालदाह एक्सप्रेस प्लेटफार्म पर लगी थी .... रात का अन्धेरा छंटने लगा था ... सर्दियों का समय था फिर भी अच्छी- खासी भीड़ थी ...फिर याद आया कुम्भ चल रहा है ...ठण्ड तो ऐसी थी कि जान निकल जाये ....पता नहीं लोग गंगा स्नान कैसे कर रहे होंगे... मैंने मन ही मन सोचा ...मैंने देखा वहां सभी खुद को ठण्ड से बचाने की कोशिश कर रहे हैं ...एक दो कुली आग सेंक रहे थे ...कोई पूरा ही चादरमय हुआ था ....और सभी के मुंह से धुंआ निकल रहा था ....और मेरी हालत तो हमेशा कि तरह ही थी ....हड्डियों तक मैं उस ठण्ड को महसूस कर सकती थी ....हालाँकि ओवरकोट, स्कार्फ और कैप से पूरी तरह से लैस थी मैं ...लेकिन ठण्ड किसी की नहीं सुन रही थी...
बड़ी हिम्मत करके मैं टिकट काउंटर पर गयी और टिकट लिया .....तभी ट्रेन आने का अनाउन्समेंट हुआ ..मैं लपक के आगे पहुंची ....ट्रेन आई दुनियाभर की भीड़ लिए ....फिर वही ठेलमठेल ....ये तो सभी जगह होता है ....लेकिन ये जगह जाट लेन का था ...जहां पलभर में लोग मरने मारने पे उतारू हो जाते हैं ...मुझे ये लट्ठमार भाषा सुकर बड़ी हंसी आती है ...एक बोला 'ओ ताऊ आगे बढ़ ले ...ताई तो निकल ली ' उस धक्कामुक्की में भी उनका संवाद पूरा होता है 'ताऊ जी बोले ना रे छोरे आगे नि दिखे पिच्छे छूट ली' ..उस भीड़ में दोनों पैरों पे खड़े होने के लिए जगह मिल जाये तो समझो अच्छे करम किये थे ...और बैठने को जगह मिल जाए तो मानो हम तो गंगा ही नहा लिए ....और मुझे गंगा नहाने का सौभाग्य मिल गया ...एक हाथ ने मुझे मजबूती से पकड़ कर सीट पर बैठा दिया ...जब मैंने बगल में देखा तो घूंघट में एक बूढी औरत थी ...उसने कहा बैठ जाओ ...मैं इत्मीनान से बैठ गयी ...उसके गोद में पांच छह साल कि एक लड़की बैठी थी ...जो नींद में एकदम चूर थी ...और अपनी दादी कि गोद से इधर उधर गिरी जा रही थी ...मैं थोड़ी देर तक वही बैठी रही ...तोड़ी देर में सामने की सीट खाली हुई तो मैं वहां बैठ गयी ...तब मैंने उस वृद्धा को ध्यान से देखा ...नींद उसे भी आ रही थी पर उसका घूंघट अपनी जगह से नहीं हिल रहा था ...बार बार वो अपना घूंघट ही सही कर रही थी ...वो मुझे लगातार देख रही थी ...और जब मेरी नजर उस पर जाती तो वो धीरे से हंस देती ... मैंने उनसे पूछा कहाँ जा रही हैं आप ....उसने बताया कि कुंभ नहाने आई थी ....अब वापस जा रही हूँ गंगापुर ...मैंने उसे ध्यान से देखा उसने घाघरा पहना था और ....लाल ओढ़नी ...एक पतला सा शौल उसे ठण्ड से बचा रहा था ....फिर वो अपने आप ही बताने लगी.... ये पोती है मेरी ...इसके दादाजी पीछे बैठे हैं ....और भी सब अपने गंगा स्नान के बारे में ....मैंने देखा वो बहुत पतली थी ....आँखे बिलकुल अन्दर धंसी हुयी थी उसकी ....फिर वो मेरे बारे में पूछने लगी ....कहाँ जा रही हो ...क्या करती हो ...और भी बहुत कुछ ...मैंने बताया उसे ....फिर थोड़ी देर बाद वो बोली ...लड़कियों को अकेले बाहर नहीं निकलना चाहिए ...जमाना बहुत ख़राब है ...और बिना मर्द मानुस के तो सफ़र बिलकुल नहीं करना चाहिए ....मैंने सोचा कि मैं उसे क्या क्या समझाऊँ ....मैं बस हंस दी थोडा सा ....मैं कुछ भी नहीं बोली क्योंकि मैं जानना चाह रही थी कि एक वृद्ध ग्रामीण स्त्री कि आज के समय को लेकर क्या सोच है ...इसलिए मैंने उसकी किसी बात का खंडन नहीं किया ...और उसकी बातों में दिलचस्पी भी दिखाई ...फिर वो बताने लगी दुनिया जहाँ कि बातें ....पुरुषों की सोच के बारे में ...उसकी बातों का कोई तर्क नहीं था पर जो सच्चाई उनमे थी मैं उसे नकार न सकी ...और फिर ये सोचकर कि मुझसे ज्यादा दुनिया देखी है इसने , मैंने उसकी बातों का पूरा सम्मान किया .....और सच कहूँ तो वो मुझे बड़ी ज्ञानवान लगी ....मैंने सोचा कि जो ये कह रही है उसमे गलत क्या है ....कुछ भी नहीं ...उसने कहा कि कठिन समय को चुनौती देने से अच्छा है कि उसी के अनुसार चलो ...ये बात उसने किस सन्दर्भ में कही मैं तुरंत भांप गयी ...फिर थोड़ी देर बाद उसके बूढ़े जी आये और पुछा कि चाय पियोगी ...उसने घूंघट और लम्बा कर लिया और बोली ...ना ...
लज्जा बहुत देखि मैंने उसके अन्दर ...या ये कहूँ कि उसने समय को चुनौती न देकर उसका साथ पकड़ लिया ...इतनी देर तक भी उसने आँचल सर से सरकने नहीं दिया था ....उसकी बातों से मैंने पाया कि वो संकीर्ण बुद्धि वाली औरत नहीं है ...वो सब जानती है ...पर उसने खुद को अपने आस पास के माहौल के अनुसार ऐसा ही बना लिया था ...नितांत घरेलू होने के बावजूद समाज में हो रही गलत चीजों के प्रति उसमे कुंठा थी ...जो उसने मुझे बताई...और मैंने महसूस किया कि मेरे सहजता से सुनने पर उसे तसल्ली भी मिली थी ।
मेरा स्टेशन आ गया ...जैसे ही मैं जाने को उठी ...वो अपनी पोती को बगल में बिठाकर उठ गयी ....और मेरे साथ दरवाजे तक आई ...ट्रेन रुक गयी ...मैंने हाथ जोड़कर उसे प्रणाम किया ...फिर उसने मेरे सिर पर हाथ रखकर कहा ...संभल के जइयो ॥

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