
क्योंकि स्वाभिमान तो हमारे-आपके लिए जरूरी होता है ...
लेकिन उनके लिए नहीं ...क्योंकि स्वाभिमान से पेट नहीं भरता
क्योंकि उनकी समस्याएं रोटी से शुरू होकर ...
रोटी पर ही ख़तम होती हैं ...केवल रोटी ...
बस पेट की ज्वाला शांत करने के लिए
जो कभी हाथ फैलाते हैं तो ...एक रूपये से कुछ नहीं मांगते
वो जानते हैं उनकी सीमायें और उनकी चादर की लम्बाई भी
उम्मीद भरी निगाहों से देखते हैं हमें ...इसी आस में कि ...
कुछ लोगों के एक-एक रूपये से आज उनकी रोटी बनेगी
मगर अफ़सोस... हमारे एक रूपये भी उनकी रोटी से कीमती हो जाते हैं ...
और हम ...उन्हें दूर से ही "आगे बढ़ने" का इशारा कर देते हैं ...
ये जानकर भी कि ...उस एक रूपये से न हम कंगाल होंगे और न वो मालामाल ...
फिर भी ...यही होता आया है हमेशा से
अपने खुशहाल जीवन पर गर्व करते हुए हम एक बार भी उनके बारे में नहीं सोचते ...
जिन्हें मौत भी किश्तों में नसीब होती है ...