मैं चाहती हूँ आकाश की उन ऊंचाईयों को छूना
जहां पहले कभी कोई न गया हो
उन ऊंचाईयों पर पहुँच कर मैं
आकाश हो जाना चाहती हूँ
सारे जहां की खुशियाँ अपने दामन में समेट कर
तुम पर लुटा देना चाहती हूँ
मगर अफ़सोस ...
तुम जो नहीं हो
...अब तक संग मेरे
तुम्हारे बगैर ये सफ़र ...
कैसे तय होगा...?
मन के भावों को शब्दों का रूप बड़ी सरलता से दिया है .........बहुत बढ़िया रचना .
ReplyDeleteSarv nichhawar karne kee nek bhawana ke saath man ke udgaron ko bayan karti aapki koshish bahut achhi lagi...... Likhte rahiye.... ek din majil awashy milegi...
ReplyDeleteआकाश को छुना कभी न कभी तो होगा ,
ReplyDeleteआप पर साया कभी किसी का तो होगा |
क्या हुआ के वो अभी नही देखा तुम्हे ,
कभी कोई पराया तुम्हारा भी होगा |
आधा सफ़र तय कर चुकी हो तुम ,
हो सकता है किसी ने जख्मो का दर्द आपनाया भी होगा |
सारी खुशिया तुम समेट चुकी हो ,
पर उन खुशियों का आगन किसी ने सजाया तो होगा |
किसी के तलाश रहती है सफ़र मे,
सफ़र को मुकाम किसी ने बनाया तो होगा |
सब को किसी आपने के तलाश रहती है ,
तभी तो कहते है के रब ने किसी न किसी को बनाया तोह होगा |