Friday, March 19, 2010

जब मैं ऑरो से मिली


मैं उससे पहली बार हॉस्पिटल के मनोरोग विभाग में मिली थी ....उसके बाद वो मुझे कई बार यूनिवर्सिटी के कैम्पस में दिखा ...अब तो वो मुझे पहचानने भी लगा है ...
जब मैंने उसे पहली बार देखा था तो वो मुझे थोडा अजीब सा लगा .....सिर पे बाल नहीं ...चेहरे पे तमाम झुर्रियां ...मोटे मोटे लटके हुए होंठ ....टेढ़ी मेढ़ी चाल ....और फटी फटी सी आवाज़ ...
एक हैल्थ प्रोग्राम के शूट के लिए हॉस्पिटल जाना हुआ ...मनोराग विभाग में ...वहां मैंने उसे देखा ...हँसता- खेलता इधर उधर दौड़ रहा था ...मैंने वहां सभी पेशेंट्स को देखा ...लेकिन वो मुझे सबसे अलग लगा .... सब मरीज अपने -अपने बेड पर थे ...लेकिन वो उनकी तीमारदारी में लगा था ...मैंने उस वार्ड की नर्स से उसके बारे में पूछा तो उसने बताया कि ये ऐसा ही है ....इसे कोई बीमारी नहीं है ...और ये यहीं रहता है ...
उसका नाम कमलुद्दीन था ...सब उसे कमलू कह कर बुला रहे थे .... कैमरा देखते ही उसकी आँखों में चमक आ गयी ... जहाँ जहाँ कैमरा जा रहा था ...वहां वहां वो भी जा रहा था ....
इस बीमारी के बारे में थोडा बहुत मैं जानती थी ...लेकिन इसे प्रिजोरिया कहते हैं ये मैं नहीं जानती थी ....कैमरे के प्रति बड़ा आकर्षण देखा मैंने उसमे ....उसने मुझसे कहा ....दीदी हमारा फोटो खींचो ...मैंने कैमरा पर्सन से कहा उसकी फुटेज लेने को ....तो वो उसके साथ मस्ती करने लगा ...पहले गाना सुनाओ ...डांस करके दिखाओ ...तभी तुम्हारा फोटो खीचेंगे हम ... वो उसे पहले से जानता था ...उसने मुझे बताया कि ये हॉस्पिटल ही इसका घर है ....ये यहीं रहता है ...यही से स्कूल जाता है ...मैंने देखा सभी उससे बड़े प्यार से बात कर रहे थे ....वो खुश भी था ये देख के अच्छा लगा ...उसके बाद वो मुझे कैम्पस में इधर उधर दिखाई दे जाता था॥
फिर मैंने 'पा' देखी .... तब मैंने उसे और नजदीक से जाना ... उसके साथ भी वही सब समस्याएं थीं जो फिल्म में दिखाई गयी थीं ...फिर भी मैंने उसे हमेशा हँसते हुए देखा था ...मैंने उसे मेस में , आंटी की दुकान में और जूस कॉर्नर के आस पास ही देखा था ...वो मुझे जब भी देखता तो तपाक से कहता ...दीदी हमारा फोटो खीचो ...मैं केवल हंस के रह जाती ....मैंने उससे एक बार पूछा तुम्हारा घर कहाँ है तो उसने जवाब दिया हॉस्पिटल में ....मैंने कहा ये घर नहीं वो घर जहाँ मम्मी पापा रहते है ...तो वो पहले तो चुप हो गया ...मैंने दुबारा पूछा ...उसने मुझे देखा और कहा कलकत्ता ...और चला गया ...
फिर एक बार उसके स्कूल में जाना हुआ ...वो कक्षा दो में था ...छोटे छोटे बच्चों के साथ खेलने में लगा था ...स्कूल की प्रिंसिपल ने बताया कि वो पंद्रह साल का है ...और जब सात साल का था तब पता नहीं कैसे यहाँ आ गया था...फिर मैंने उसे उसकी टीचर से कहते सुना कि मैडम हमें छुट्टी चाहिए ....वो एक वाक्य को दो बार बोलता था ...वो फिर बोला मैडम दुर्गा पूजा है हमारे यहाँ हमें छुट्टी दे दो .....फिर उसने तुरंत बोला ..ईद भी आ रही है ...मैं उलझ के रह गयी ....ये तो सब जानता है ...बिलकुल सामान्य बच्चों की तरह...
मैं एक बार विशेष रूप से उसके लिए हॉस्पिटल गयी ...वो स्कूल गया था ...कुछ डॉक्टर्स से उसके बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि ..ये ऐसा ही रहेगा ....इलाज संभव नहीं है ...हम सभी उसका पूरा ध्यान रखते है ...मैंने देखा सभी को उसकी चिंता थी ...
मैं घर आई तो महसूस किया कि मन का झंझावत थम गया है ....फिर सब सामान्य हो गया ।
कई दिनों बाद वो मुझे आंटी कि दुकान में मिला ...मुझे देखते ही बोला ....दीदी नमस्ते ...मैं हंस दी ...मैंने पूछा कैसे हो ...तो पहले तो वो अपनी चिर परिचित हंसी में हंसा फिर बोला ...ठीक हूँ ...फिर तुरंत ...आपका कैमरा कहाँ हैं ...मैं हंसने लगी ...मैंने कहा मेरे ऑफिस आना मैं तुम्हारी ढेर सारी फोटो खीचूंगी ....उसने कहा मैंने देखा है मिडिया का ऑफिस कल आऊंगा .फिर मैं सामान खरीदने लगी ....और दुकान से बाहर आ गयी ...अभी मैं जूस कॉर्नर तक ही पहुंची थी कि पीछे से आवाज आई ...दीदी ...मैंने पलटकर देखा वो अपनी टेढ़ी मेढ़ी सी चाल में दौड़ कर मेरे पास आ रहा था ...पास आकर बोला..दीदी आपका चाभी ....ये लो दुकान में छूट गया था ...अभी मैं उसे कुछ बोल पाती तब तक ....तब तक वो वापस लौट गया ...और मैं उसे तब तक देखती रही जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गया .

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