Friday, March 19, 2010

नानी की कहानी

मेरी नानी बहुत प्यारी थी ....वो सभी को प्यार करती थी ...क्या लिखूं उनके बारे में ...शब्द नहीं है मेरे पास ...अब वो नहीं हैं ....बहुत याद आती है उनकी....उनसे मिलना बस गर्मियों की छुट्टियों में ही हो पाता था ... उनके बारे में ज्यादा तो मम्मी से ही जानने को मिला ....मुझे समझ में नहीं आता कि कैसे कोई इतना स्वाभिमानी हो सकता है ....वो पढ़ी-लिखी नहीं थी ...लेकिन अनपढ़ भी नहीं थी ...लिखना पढ़ना जानती थी वो..नाना जी के जाने के साल भर बाद वो भी चली गयीं..भगवान के पास ..उनके आखिरी समय में मै उन्हें नहीं देख पायी..इस बात का बोझ हमेशा मेरे दिल पर रहेगा।
गर्मियों कि छुट्टी में जब हम सब घर पर इकठ्ठा होते थे तो बहुत खुश होती थी वो ....उनकी एक बाद जो मुझे हमेशा याद आती है ...वो हमेशा खाने के लिए कहती रहती थी सब को ...खाना खईलू ह ...कुछु खा ल ...अगर मै कहती कि नानी मैंने अभी खाना खाया है ...तो वो कहती ...अऊरी खा ल नाही त पेटवा झुरा जाई ...
शाम को जब सब सोकर उठते तो वो सबके लिए सिरफल का जूस बनाती ...मुझे अभी भी याद है उनके आगे के दांत नहीं थे ...और जब उन्हें कोई चीज़ ध्यान से देखनी होती थी तो आँखों में उत्सुकता के साथ उनका मुंह अपने आप खुल जाता था..तब बड़ी अच्छी लगती थी वो ....जब कभी उनकी याद आती है तो उनका यही चित्र आँखों के सामने आता है ...बहुत सुन्दर थी वो
जब कभी मुझे सोने के लिए कही जगह नहीं मिलती तो मैं उनके पास चली जाती थी ...गर्मियों में हम सब बच्चे छत पे सोते थे और मम्मी ,मौसी ,मामी और नानी ये सब लोग घर के अन्दर के आँगन में सोती थी ....नानी में से हमेशा एक ही खुशबु आती थी ..कोई ठंडा तेल ...या लौंग इलायची जैसी कोई खुशबु ...उनका ओढना , बिछौना, तकिया सब उन्ही की खुशबु लिए होते थे ।
उनकी एक बात जो मुझे कभी समझ में नहीं आती थी कि वो नाना जी से घूँघट क्यों करती थी ....
गाने बजाने की बड़ी शौक़ीन थी मेरी नानी ...कभी-कभी मैंने उन्हें देखा कि वो सूप से अनाज फटकते हुए सूप ही बजाने लगती थी ...और फिर ईचक दाना - बीचक दाना , दाने ऊपर दाना ॥
इतना प्यार था उनके अन्दर कि कभी भी ऐसा नहीं लगा कि नानी मौसी या मामी कि बेटी को मुझसे ज्यादा मानती हैं या मुझसे कम ...जो औरते घर में काम करने आती थी नानी उनसे भी खूब प्यार से बात करती थी ....उनसे भी पूछती कि खाना खाया है या नहीं ....
उनकी यादें और बाते इतनी हैं कि मैं उन्हें मात्र एक लेख में नहीं पिरो सकती ....अगर सच सच कहूँ तो मेरा दिल घर के किसी और सदस्य के लिए इतना नहीं कचोटता जितना कि नानी के लिए ...सब लोग कहते हैं ...देवी थीं वो ॥
मेरी माँ के रूप में नानी मेरे लिए आज भी जिन्दा हैं ....उनकी हंसी ,उनकी बातें सब कुछ मुझे नानी कि याद दिलाते हैं ....और सबसे ज्यादा तो ये कि मम्मी के दांत भी आगे से टुकड़े टुकड़े होकर टूट रहे हैं ....अभी जब मैं जब होली पे घर गयी थी तो मम्मी कह रही थी ...तोहार पापा कहेलं कि तू बूढा गईल हाउ ...मैं हंसने लगी ...मैंने कहा नहीं मम्मी अभी आप जवान हो ....आप मेरे साथ चलो मेरठ ...आपके दांत का इलाज करवा दूंगी ...मम्मी तैयार हो गयी ....ठीक ह अगली बार जब अईबू तब हम चलब तोहरी साथे ....
मैंने मम्मी को कह तो दिया अपने साथ चलने के लिए लेकिन फिर मैं मन ही मन सोच रही थी कि क्या खराबी है तुम्हारे दांतों में ...मत सही करवाओ इन्हें .... क्योंकि जब तुम हंसती हो तो बिलकुल नानी जैसी लगती हो.

1 comment:

  1. दिव्या जी , नानी की कहानी को जिस मार्मिकता से लिखा वाकई सब कुछ आखो के सामने आ गया .....वैसे आप कुछ और छोटी घटनाओ का वर्णन करती तो रोचकता और भी बढ़ जाती फिर भी प्रयाश बहुत ही अच्छाहै वैसे भी आजकल संस्मरण कम ही पढने को मिलते है.... यूँ ही लिखती रहिये यही मंगल कामना है

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