जब मैंने ये शीर्षक लिखा था तो दिमाग में कोई विशेष सवाल नहीं था ...लिखा केवल इसलिए कि इस विषय पर मैं शायद कुछ अच्छा लिख पाऊं ....
अभी कुछ दिनों पहले कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी ....मैं ये बिलकुल भी नहीं कहने जा रही हूँ कि ...कोर्ट ने ये सही किया या गलत ...लेकिन सवाल ये है कि वेदों कि आड़ क्यों ली गयी ....कृष्ण और राधा का उदाहरण क्यों दिया गया ... वो लोग दैवीय शक्ति थे ये सभी जानते है ...फिर उन्हें उदाहरण बनाया गया ....आम इंसानो के लिए ..ये कहाँ तक उचित है...
बवाल तो जितना हो सकता था हुआ ...लेकिन सवाल ये है कि इसकी जरूरत क्या थी ....क्या मान्यता न मिलने से पहले भारत में कोई लिव इन में नहीं रहा ...या अगर रहा भी तो उसे किसी बात का डर था ...कई फ़िल्मी हस्तियों ने खुले आम स्वीकारा कि वो लिव इन में रह रहे हैं ....
मैं यहाँ भारतीय सभ्यता और संस्कृति की दुहाई नहीं देने जाउंगी क्योंकि कुछ बचा नहीं है हमारे पास .... एक परिवार व्यवस्था थी जो आज भी हमें पश्चिमी देशों से अलग करती थी ...वो भी तैयार है आधुनिकता के रंग में रंगने को ....
बात पश्चिमी देशों कि की जाती है ...वहां तो ये सब आम है ...और फलां-फलां ....लेकिन सवाल ये है कि क्या आप हर मायने में उनकी सोच से प्रभावित होते हैं ... उनके जैसी खुली सोच एक भारतीय कभी नहीं रख सकता .... फिर चाहे वो लाख मॉडर्न मान ले खुद को ... पहले जैसा हम रहना नहीं चाहते .... गंवार कहे जायेंगे ... दकियानूसी ख्यालों के माने जायेंगे ...ऐसे में हमारी स्थिति बीच की हो के रह जाती है ... न तो हम अंग्रेजों कि तरह बिलकुल खुल पाते हैं और न ही एक संस्कारवान भारतीय ही बने रह पाते है ....