एक नवजात की त्रासदी पर कुछ लिखने के लिए शब्द नहीं चुन पा रही हूँ ...कुछ पंक्तियाँ लिखने के लिए भी भूमिका बांधनी पड़ रही है ...मैंने उसे कभी हँसते नहीं देखा... शायद उसे पता है की नियति ने उसके साथ कितना क्रूर खेल खेला है ...उस अबोध के लिए दुनिया की तमाम खुशियों की कामना में हृदयसे निकले कुछ शब्द ....
नियति की क्रूरता का दंश कैसे झेलोगे तुम
माँ की छाया में बैठकर उसके आँचल से कैसे खेलोगे तुम
कौन है तुम्हारा गुनाहगार ...?
कितने विश्वास के साथ तुम मेहमान बन कर आये थे हमारे आँगन में ...
तुम्हारी किलकारी ने गुंजाया था पूरा घर ...
नियति के भेद को तो तुम समझ भी नहीं सकते थे
तुम तो जानते थे माँ के आँचल में खुद को छिपाना
और पिता का असीमित प्यार पाना
ऐसे ही तो तुमने दुनिया को जाना ...
ख्वाबों से तो अभी पड़ा भी न होगा वास्ता
दुनिया की झलक तो अभी उस चेहरे में ही देखी होगी ...
जिसने तुमसे हमेशा के लिए ही चेहरा छुपाया ॥
अभी तो तुम समझ भी न पाए थे जीवन का मतलब
तुम्हे तो याद भी न होगी माँ के चेहरे की ममता
और तुमसे दूर जाने की उसकी तड़प ...
न ही याद होगा तुम्हे अपनी माँ का कभी न उठने के लिए सो जाना ॥
शायद तुमने रो रो कर अपने माँ को उठाया होगा
अपने क्रंदन से पिता को भी रुलाया होगा
फिर भी तुम्हारे हाथ शून्य ही आया होगा
तुम्हारा मासूम चेहरा ...सूनी आँखे और सौम्य स्पर्श ...
द्रवित कर देता है...
तुम्हे मिले जीवन की बाकी सभी खुशियाँ ...
मैं इश्वर से प्रार्थी हूँ ...
मार्मिक वर्णन ........बहुत खूब
ReplyDelete