पढ़ा था कहीं...
कि मन के भावों को बस लिख भर देने से
बन जाती है कविता ...
तो फिर कहाँ हैं मेरी तमाम कवितायेँ
जो मैंने कभी लिखनी चाही थी
पर लिख नहीं पायी थी
भावनाओं के आगे बेबस हो जाती हूँ मैं
नहीं उठती कलम उन भावनाओं को लिखने को
जिन्होंने मुझे हजार बार तोडा है
मेरे हालातों पे मुझे ही तरस खाने को छोड़ा है
मुझे भयभीत किया है जमाने के डर से
रुलाया है मुझे स्याह रातों में
...वो सब बातें जो दुःख देती हैं मुझे
उन्हें कविता का रूप देने का साहस कहाँ से लाऊं मैं ...
aapkee kavitaen kahan hain? woh to aapkee is rachna ko padhane wale harek shakhs kee yaad men hamesha ke liye rach bas jaegee. bahut achchha likha hai aapne
ReplyDeleteसुंदर काव्यमय अभिव्यक्ति...बस यूँ ही तो बन जाती हैं कविताएँ
ReplyDeleteकमेंट्स सेट्टिंग से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें ..टिप्पणी करने वालों को आसानी होगी .
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ... बहुत अच्छा लगा पढ़कर ...
ReplyDeleteअरे ये भावनायें ही तो हैं। कैसी उकेरी हुई हैं इन सुन्दर पंक्तियों मे। सुन्दर।
ReplyDeleteइस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई...
ReplyDeleteनीरज
सच अपने दुख को खुद ही कुरेदना .. आसान नही होता ... शब्द मौन हो जाते हैं ...
ReplyDeletesundar bhav bhari rachna...!!
ReplyDeleteSangeeta ji ka bahut bahut Dhanyavaad.
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