कभी सोचा नहीं था कि कभी जब स्त्री विमर्श पर कोई लेख लिखूंगी तो स्त्रियों की बदहाली का एक बड़ा उदाहरण सामने होगा...ज्यादा फर्क नहीं पड़ता अगर ये उदाहरण न भी होता...लेकिन इस एक हादसे ने सभी को जगा दिया है...अपने हक के लिए लड़कियां आवाज उठाने लगी हैं...समाज को भला लगे या बुरा स्त्रियों की आजादी के नए मापदंड तैयार हो रहे हैं...हालांकि हमारे इस चोट खाए मुल्क में इन नए मापदंडों को अमल में आने में काफी समय लगेगा...संकीर्ण मानसिकता से भरे लोगों के लिए लड़की की इस नई परिभाषा को स्वीकार करना आसान नहीं होगा...पर एक दिन सोच जरूर बदलेगी...ऐसा मेरा विश्वास है...वो नई परिभाषा क्या है जरा इस पर बात करते हैं...
1-कोई भी लड़की अब बेचारी नहीं है....और अपनी सेफ्टी के लिए अब वो किसी मर्द का सहारा नहीं लेगी...पिता और भाई का भी नहीं।
2-वो अपनी मर्जी की मालिक है...माता-पिता भी उसे उतनी ही मर्यादाएं सिखाएं जितनी उसकी अच्छी परवरिश के लिए जरूरी हैं।
3-लड़की को भी अपने भाई के बराबर ही शिक्षा लेने का अधिकार है...बेटे को इंजीनियरिंग की महंगी पढ़ाई और बेटी को साधारण ग्रेजुएशन !....नहीं... शिक्षा उसका हक है और वो भी पढ़ेगी ...भाई के बराबर पढ़ेगी।
4-बड़ी होती बेटी पर माता-पिता फालतू के नियम-कायदे थोपने से बाज आएं और आवारा बेटे पर थोड़ी सी लगाम लगाएं...।
5-पहले लड़की को ज्यादा इसलिए नहीं पढ़ाया जाता था कि उसे दूसरे के घर जाना है और वहां जाकर रोटियां बेलनी है....लेकिन मम्मियों और पापाओं शादी के बाद मैं रोटी बनाउं या गोबर पाथूं...तब तक पढ़ूंगी जब तक मेरा मन करेगा।
6-और हां आस-पड़ोस और रिश्तेदार मेरी चिंता बिल्कुल न करें...मेरी शादी जब भी होगी आपको जरूर आमंत्रित किया जाएगा पूड़ी खाने के लिए।
7-पब्लिक प्लेस और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अगर मुझसे चिपकने की कोशिश की तो ऐसी जगह मारूंगी कि पुरूष नहीं रह जाओगे।
8-मिस्टर ब्वायफ्रेंड और हसबैंड...कान खोलकर सुन लो...तुम्हारी लाइफ पार्टनर हूं...तुम्हारी पाॅपर्टी नहीं...तो तुम भी लिमिट में रहो...मुझसे जुड़े फैसले मैं खुद ले सकती हूं...तुम्हार दखल सिर्फ साझा फैसलों में होगा।
9-पति-पत्नी दोनों अगर वर्किंग हैं तो दोनों की घर के काम में बराबर की हिस्सेदारी होगी...तुम्हारी नौकरानी नहीं हूं मैं...लाइफ पार्टनर हूं...तो हर चीज को साझा करना होगा...जिम्मेदारियों से लेकर घर के काम में।
10-ससुराल के भी दायरे तय किए जाएंगे...बहू हूं कठपुतली नहीं जो सास के इशारों पर नाचूं...बहू होने का फर्ज जानती हूं मैं...साड़ी भारी पहननी है या हल्की ये मैं तय करूंगी...बालों में तेल लगाना है तो लगाउंगी...और जूड़ा भी बनाउंगी...सास की सहेलियों के लिए बाल नहीं फहराउंगी।
और अगर लाइफ पार्टनर के साथ ट्यूनिंग जमती नहीं है तो मैं उसे रिजेक्ट कर सकती हूं...और जब मैं ऐसा करूं तो प्लीज मुझे अबला न समझा जाए...एंड फाॉर गाॉड सेक मुझे सहानुभूति तो बिल्कुल न दी जाए...क्योंकि मैं आजाद हूं....।